संदर्भ चित्र (सोर्स- सोशल मीडिया)
Ladakh News: 2019 में जब लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग करके केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया, तो जश्न मनाया गया। स्थानीय लोगों का कहना था कि सरकार ने उनकी दशकों पुरानी अलग दर्जे की मांग पूरी कर दी है। लेकिन जैसे-जैसे समय बीता, धुंधली परत हटी तो सच कुछ और निकला।
लद्दाखियों की शिकायत थी कि जम्मू-कश्मीर से उनके लिए पर्याप्त धनराशि जारी नहीं की गई और वे एक तरह से मुख्यधारा से कटे हुए थे। इसलिए, 2019 में खूब जश्न मनाया गया, लेकिन अगले एक-दो साल में ही सब कुछ बदल गया। स्थानीय लोगों को लगने लगा कि भले ही वे जम्मू-कश्मीर से अलग हो गए हों, लेकिन प्रशासन में उनकी भागीदारी अभी भी वैसी नहीं है जैसी वे चाहते थे।
जब कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ने भी इस मुद्दे को उठाने का फैसला किया, तो यह आग फैलने लगी। स्थानीय लोगों का कहना है कि अब फर्क बस इतना है कि श्रीनगर या जम्मू से शासन की बागडोर दिल्ली के हाथ में है। इसलिए, वहां एक विधानसभा होनी चाहिए, राज्य का दर्जा होना चाहिए और इस क्षेत्र को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल किया जाना चाहिए।
यह लद्दाखियों की भाषा और संस्कृति की रक्षा के लिए है। इसी वजह से लद्दाख में एक बार फिर अशांति फैल गई है। ताज़ा हिंसा में दंगाइयों ने भाजपा कार्यालय पर हमला किया और एक पुलिस वैन में आग लगा दी। फिलहाल, सोनम वांगचुक समेत कई लोग भूख हड़ताल पर हैं।
पूरे लद्दाख में बंद का माहौल है। दिलचस्प बात यह है कि कारगिल और लेह, जो आमतौर पर अलग-अलग रुख़ रखते हैं, के बीच उल्लेखनीय एकता है। कारगिल में शिया मुसलमानों की बहुलता है, जबकि लेह को बौद्ध राजधानी माना जाता है। लेकिन इस बार, दोनों पक्षों के लोग एकजुट हैं और उन्होंने राज्य का दर्जा मांगने के लिए लेह-कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस नामक एक संगठन बनाया है।
ये मांगें इसी बैनर तले की जा रही हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि केंद्र सरकार के प्रत्यक्ष शासन के खिलाफ पिछले तीन सालों से विरोध प्रदर्शन बढ़ रहे हैं। वे लगातार अपनी संस्कृति, ज़मीन और संसाधनों की रक्षा की मांग करते रहे हैं और इसके लिए स्थानीय सरकार ज़रूरी है।
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गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने इन मांगों पर विचार के लिए एक समिति बनाई थी। इस समिति की कई बैठकें हुईं, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। अमित शाह ने इस साल मार्च में लद्दाख के एक प्रतिनिधिमंडल से मुलाक़ात भी की थी, लेकिन बातचीत आगे नहीं बढ़ पाई। स्थानीय लोगों का कहना है कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि अमित शाह ने उनकी मुख्य मांगों को ठुकरा दिया था।