एमएस स्वामीनाथन ( सोर्स - सोशल मीडिया)
नवभारत डेस्क : 7 अगस्त, 1925 को तमिलनाडु के कुंभकोणम में जन्मे एम. एस. स्वामीनाथन का जीवन महात्मा गांधी की मान्यताओं और भारत के स्वतंत्रता संग्राम से अत्यधिक प्रभावित रहा। पूरा नाम मनकोम्बु साम्बशिवन स्वामीनाथन था। उनका प्रारंभिक सपना चिकित्सा क्षेत्र में करियर बनाना था, लेकिन 1942-43 में बंगाल के भीषण अकाल ने उनके जीवन की दिशा बदल दी। इस त्रासदी ने उन्हें गहरे स्तर पर प्रभावित किया और उन्होंने यह ठान लिया कि वे भारत के कृषि उद्योग को सशक्त करेंगे, ताकि देश फिर कभी खाद्य संकट का सामना न करे। यही संकल्प उनकी पूरी ज़िंदगी का मार्गदर्शक सिद्धांत बन गया।
एम. एस. स्वामीनाथन ने कृषि अनुसंधान और शिक्षा के क्षेत्र में अपनी छाप छोड़ते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के महानिदेशक के रूप में कार्य किया। इसके साथ ही उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भी प्रमुख भूमिकाएं निभाईं। उनका सबसे उल्लेखनीय योगदान भारत में हरित क्रांति लाने में था, जिसने न केवल भारतीय कृषि को पुनर्जीवित किया बल्कि इसे आत्मनिर्भरता की ओर भी अग्रसर किया। स्वामीनाथन के नेतृत्व में अधिक उपज वाली गेहूं और चावल की किस्मों, विशेष रूप से अर्ध-वामन (Semi-Dwarf) किस्मों को विकसित किया गया। यह क्रांतिकारी कदम 1960 और 70 के दशक के दौरान भारतीय कृषि का रूपांतरण करने वाला सिद्ध हुआ। इन किस्मों ने पैदावार को काफी तेजी से बढ़ाया, जिससे भारत खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भर हो सका और अकाल का संकट समाप्त हो गया।
स्वामीनाथन का दृष्टिकोण केवल वैज्ञानिक अनुसंधान तक सीमित नहीं था, वे किसानों के कल्याण के प्रति भी गहरे रूप से प्रतिबद्ध थे। उन्होंने कृषि उत्पादों के लिए उचित मूल्य और टिकाऊ कृषि पद्धतियों की वकालत की। उनकी ‘स्वामीनाथन रिपोर्ट’ ने कृषि क्षेत्र की समस्याओं का आकलन किया और न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी MSP की सिफारिश की, जिसके अनुसार MSP को उत्पादन लागत से कम से कम 50% अधिक होना चाहिए। आज भी, यह सिफारिश भारत में कृषि संघों की प्राथमिक मांगों में से एक है।
स्वामीनाथन ने पौधों की किस्मों और किसानों के अधिकार के संरक्षण अधिनियम, 2001 के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने ‘मन्नार की खाड़ी समुद्री जीवमंडल’ और ‘समुद्र तल से नीचे धान की पारंपरिक खेती’ वाले केरल के कुट्टनाड क्षेत्र को विश्व स्तर पर महत्त्वपूर्ण कृषि विरासत स्थल के रूप में मान्यता दिलाई। उन्होंने इन क्षेत्रों की जैवविविधता और पारिस्थितिकी के संरक्षण में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। 1988 में उन्होंने एम. एस. स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन (MSSRF) की स्थापना की, जिसका उद्देश्य सतत् कृषि और ग्रामीण विकास को बढ़ावा देना था। MSSRF विशेष रूप से आदिवासी और ग्रामीण समुदायों पर ध्यान केंद्रित करता है और गरीब समर्थक, महिला समर्थक और प्रकृति समर्थक दृष्टिकोण अपनाता है।
एम. एस. स्वामीनाथन के अभूतपूर्व योगदान के लिए उन्हें कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। उन्हें 1987 में प्रथम विश्व खाद्य पुरस्कार से नवाजा गया। इसके अलावा, उन्हें पद्म श्री (1967), पद्म भूषण (1972) और पद्म विभूषण (1989) से भी सम्मानित किया गया। उन्हें रेमन मैग्सेसे पुरस्कार (1971) और अल्बर्ट आइंस्टीन विश्व विज्ञान पुरस्कार (1986) जैसे प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय सम्मान भी प्राप्त हुए।
एम. एस. स्वामीनाथन का जीवन और कार्य भारतीय कृषि के इतिहास में मील का पत्थर है। उनकी सोच, शोध और नेतृत्व ने न केवल देश को खाद्य संकट से बाहर निकाला, बल्कि कृषि क्षेत्र को एक नई दिशा दी। वे किसानों के सच्चे मित्र और भारतीय कृषि के महानायक थे। एम. एस. स्वामीनाथन 98 साल की उम्र में 28 सितंबर 2023 को इस दुनिया को छोड़ चले।
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