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पाकिस्तानी सेनाओं को धूल चटाकर, पहाड़ी पर कैप्टन विक्रम बत्रा ने किया था कब्ज़ा, जानें इस बहादुर जवान के बारे में

  • By वैष्णवी वंजारी
Updated On: Jul 07, 2021 | 01:26 PM
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नई दिल्ली : देशभक्ति का दूसरा नाम है शहादत, इस वाक्य पर खरे उतरते हैं हमारे देश के जवान, ऐसे अनेक युद्ध है जो इतिहास बन चुके हैं, ऐसे ही एक युद्ध हुआ था जो आज भी हमारे जेहन मे हैं। भारत में कारगिल युद्ध (Kargil War) भारतीय सेना के लिए एक महत्वपूर्ण युद्ध था। इसकी अहमियत भारतीय सैन्य इतिहास में बहुत अधिक है क्योंकि इस युद्ध में हमारी सेना (Indian Army) ने साहस के साथ हालात के मुताबिक जिस रणकौशल और धैर्य का परिचय दिया, वह अद्वितीय था। इस युद्ध में हमने एक ऐसा वीर पुत्र खो दिया जिसने बहादुरी के नए आयाम बनाए थे। तो चलिए जानते है बिस बहादुर जवान के बारे में…..

कारगिल युद्ध में शहादत

कैप्टन विक्रम बत्रा ने 24 साल की उम्र में वह ऊंचा मुकाम हासिल किया जिसका सपना हर भारतीय सैनिक देखता है। कारगिल युद्ध में प्वाइंट 4875 पर कब्जे करने में अहम भूमिका निभाई थी। हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में जन्मे विक्रम बत्रा के पिता गिरधारी लाल बत्रा सरकारी स्कूल में प्रिंसिपल थे और उनकी मां एक स्कूल टीचर थीं। तत्वनिष्ठ और कर्तव्यदक्ष परिवार में कैप्टन विक्रम बत्रा बढ़े हुए और खुको देश के नाम कर दिया। 

परमवीर चक्र से सम्मानित 

लगभग 30,000 भारतीय सैनिक और करीब 5000 घुसपैठ इस युद्ध में शामिल थे। भारतीय सेना और वायुसेना ने पाकिस्तान के कब्जे वाली जगहों पर हमला किया और धीरे-धीरे अंतर्राष्ट्रीय सहयोग से पाकिस्तान को सीमा पार वापिस जाने को मजबूर किया। यह युद्ध ऊँचाई वाले इलाके पर हुआ और दोनों देशों की सेनाओं को लड़ने में काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। परमाणु बम बनाने के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ यह पहला सशस्त्र संघर्ष था। भारत ने इस कारगिल युद्ध को जीता। लेकिन हमारे देश को एक ऐसी क्षति हुई की हमने इस यद्ध में अपना बहादुर जवान कैप्टन विक्रम बत्रा को खो दिया।इस युद्ध में कैप्टन विक्रम बत्रा (Captain Vikram Batra) को उनके अदम्य साहस के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र का सम्मान दिया गया था। 13 जम्मू और कश्मीर राइफल्स के कैप्टन बत्रा 7 जुलाई 1999 को ही कारगिल युद्ध में शहीद हुए थे। 

बड़े आकर्षक करियर को छोड़ देशसेवा को दी अहमियत 

पालमपुर में स्कूल शिक्षा के बाद चंडीगढ़ में स्नातक की पढ़ाई की जिसके दौरान उन्होंने एनसीसी का सी सर्टिफिकेट हासिल किया और दिल्ली में हुई गणतंत्र दिवस की परेड में भी भाग लिया। जिसके बाद उन्होंने सेना में जाने का फैसला कर लिया। स्नातक की पढ़ाई के दौरान ही बत्रा मर्चेंट नेवी के लिए हांगकांग की कंपनी में चयनित हुए थे, लेकिन उन्होंने आकर्षक करियर की जगह देशसेवा तो तरजीह दी।

 

ऐसे हुआ था सेना में प्रवेश

स्नातक की पढ़ाई के बाद उन्होंने संयुक्त रक्षा सेवा की तैयारी शुरू कर दी और 1996 में सीडीएस के साथ ही सर्विसेस सिलेक्शन बोर्ड में भी चयनित हुए और इंडियन मिलिट्री एकेडमी से जुड़ने के साथ मानेकशॉ बटालियन का हिस्सा बने। ट्रेनिंग पूरी करने के 2 साल बाद ही उन्हें लड़ाई के मैदान में जाने का मौका मिला था। 

 सेना में शुरुआत में ही मिली सफलता 

दिसंबर 1997 उन्हें जम्मू में सोपोर में 13 जम्मू कश्मीर राइफल्स में लेफ्टिनेंट पद पर नियुक्ति मिली जिसके बाद जून 1999 में कारगिल युद्ध में ही वे सफलता के आधार पर कैप्टन के पद पर पहुंच गए. इसके बाद कैप्टन बत्रा की टुकड़ी को श्रीनगर-लेह मार्ग के ऊपर अहम 5140 चोटी को मुक्त कराने की जिम्मेदारी दी गई।

कारगिल युद्ध जीत कहा ‘दिल मांगे मोर’

पहले तो कैप्टन बत्रा घूम कर बिना दुश्मन को इसकी भनक लगे चोटी पर इतना चढ़ने में सफल हुए। जिससे दुश्मन सैनिक उनके मारक जद में आ गए, जबकि उनकी टुकड़ी हमेशा से ही दुश्मन की मारक जद में थी। यहां से कैप्टन ने अपने साथियों का नेतृत्व किया और दुश्मन पर सीधा हमला बोल दिया और 20 जून 1999 के सुबह साढ़े तीन बजे चोटी को अपने कब्जे में लेकर रेडियो पर अपनी जीत का उद्घोष करते हुए ये दिल मांगे मोर कहा। 

4875 की वह खास चोटी को दिया विकर्म बत्रा टॉप नाम 

बत्रा की टुकड़ी को इसके बाद 4875 की चोटी पर कब्जा करने की जिम्मेदारी मिली। इस संकरी चोटी पर पाक सैनिकों ने मजबूत नाकाबंदी कर रखी थी। कैप्टन बत्रा ने इस बार भी वही रणनीति अपना कर उस पर जल्दी से अमल में लाने का फैसला लिया। इस बार भी अपने काम में सफल तो हुए लेकिन इस दौरान वे खुद भी बहुत जख्मी हो गए और चोटी पर भारत का कब्जा होने से पहले उन्होंने अपनी टुकड़ी के साथ कई पाकिस्तान सैनिकों को खत्म कर दिया और अपने प्राणों की आहुति दे दी। कैप्टन बत्रा की बहादुरी के लिए उन्हें ना केवल मरणोपरांत परमवीर चक्र का सम्मान मिला बल्कि 4875 की चोटी को भी  विक्रम बत्रा टॉप नाम दिया गया है। वे पालमपुर के दूसरे ऐसे सैनिक हैं जिन्हें परमवीर चक्र मिला है। उनसे पहले मेजर सोमनाथ शर्मा को देश में सबसे पहले परमवीर चक्र प्रदान किया गया था। 

Capturing the hill captain vikram batra had captured the pakistani forces know about this brave soldier

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Published On: Jul 07, 2021 | 01:26 PM

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