वर्धा विधानसभा सीट (डिजाइन फोटो)
वर्धा: महाराष्ट्र के चुनावी समर में हर एक पार्टी का उम्मीदवार दो-दो हाथ करने को तैयार है। हर एक सीट मोर्चे की तरह नज़र आ रही है। चुनावों का औपचारिक ऐलान भले ही अभी नहीं हुआ है, लेकिन हर एक मोर्चे के लिए सिपहसालारों की तलाश होने लगी है। वहीं, सैनिक भी सेनापति के पद के लिए पार्टी में दावेदारी पेश करने लगे हैं। लेकिन किस मोर्चे पर कौन यह जिम्मेदारी संभालेगा इसका फैसला पार्टियों के आलाकमान ही करेंगे।
इस चुनावी समरबेला में हम भी अपना दायित्व निभाते हुए हर सीट की एक-एक जानकारी आप तक पहुंचाने के काम में लगे हुए हैं। अब तक किस सीट पर कौन जीता? कौन सी किसका गढ़ रही है? वहां के जातीय समीकरण और मुद्दे क्या हैं? इस बार माहौल किसके पक्ष में दिखाई दे रहा है? जैसे सवालों के जवाब आपको इस आर्टिकल में मिल जाएंगे। इस सीरीज में आज हम वर्धा सीट के बारे में बात करेंगे। तो चलिए शुरू करते हैं।
साल 1972 में वर्धा सीट पर पहली बार चुनाव हुए। इस चुनाव में कांग्रेस ने जो विजय अभियान शुरू किया उसे 1990 में माणिक महादेव सबाने ने निर्दलीय ही रोकने में कामयाबी हासिल की। इसके बाद 1999 और 2004 में फिर से कांग्रेस ने विजयश्री हासिल की। लेकिन साल 2009 के चुनाव में फिर से निर्दलीय उम्मीदवार देशमुख सुरेश बापूराव ने निर्दलीय जीत हासिल की। उसके बाद 2014 और 2019 में बीजेपी ने इस सीट पर कब्जा जमाया है।
सामान्य श्रेणी की इस सीट पर कांग्रेस ने कुल 7 बार जीत दर्ज की है। जिसमें 6 बार शेंडे प्रमोद भाऊसाहेब की ही जनता ने जनादेश दिया है। जबकि पहले चुनाव यानी 1972 में वसंतराव जे कार्लेकर ने यहां विजय पताका फहराई थी। बात करें यहां के जातीय आंकड़ों की तो 49 हजार 165 एससी वोटर्स हैं। जो कि कुल वोट का करीब 16 फीसदी हैं। इसके अलावा 9 प्रतिशत के आस-पास आदिवासी वोटर्स भी हैं। 4 फीसदी के करीब मुस्लिम मतदाता भी लोकतंत्र में भागीदारी निभाते हैं।
2019 के चुनावी आंकड़ों के मुताबिक इस सीट पर कुल 3 लाख 20 हजार 291 मतदाता हैं। जिसका 62 फीसदी हिस्सा शहरी वोटर्स हैं। शहरी वोटर्स के ज्यादा होने के चलते यहां मुद्दे भी शहर वाले ही रहते हैं। ग्रामीण इलाकों में पानी, सड़क, चिकित्सा और शिक्षा के मुद्दे हावी होते हैं। बात करें इस बार यहां की संभावनाओं के बारे में तो कुछ भी ठीक-ठीक कह पाना मुश्किल है। महाराष्ट्र की राजनीति में पिछले 5 साल में जो उठा पटक हुई है उसके बाद यह कहना कि किस सीट पर कौन जीतेगा बहुत कठिन है।