रतन टाटा (सौजन्य : सोशल मीडिया )
नई दिल्ली : देश के सबसे बड़े और महानतम बिजनेसमैन के रुप में पहचान बनाने वाले रतन टाटा किसी भी परिचय के मौहताज नहीं है। भले ही उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कर दिया हो, लेकिन उनकी यादें आज भी लोगों के दिलों में जिंदा है। उनकी मौत के बाद सबसे बड़ा सवाल ये है कि टाटा की 15000 करोड़ की संपत्ति का मालिक कौन होगा।? इस सवाल पर अभी भी सस्पेंस बरकरार है, आइए इसके बारे में हम आपको जानकारी देते हैं।
रतन टाटा की वसीयत में उनके फाउंडेशन, उनके भाई जिमी टाटा, उनकी सौतेली बहनें शिरीन और डिनना जीजीभॉय और उनके पर्सनल स्टाफ के कुछ सदस्य शामिल हैं। रतन टाटा की वसीयत में उनके करीबी लोगों के लिए सोच-समझकर व्यवस्था की गई है, जिसमें इन सभी लोगों के नाम शामिल हैं।
बताया जा रहा है कि रतन टाटा का फाउंडेशन उनके पर्सनल पैसों से चलाया जाएगा, जिससे सोशल वर्क होगा। हालांकि इस बात का फैसला अभी तक नहीं हुआ है कि आरटीईएफ का ट्रस्टी कौन होगा। इस कंफ्यूजन का कारण ये है कि रतन टाटा ने अपनी वसीयत में किसी के प्रकार से इसका जिक्र नहीं किया है। अब उम्मीद की जा रही है कि टाटा ग्रुप से जुड़े लोग आरटीईएफ के ट्रस्टी के लिए बिना किसी पक्षपात करने वाले इंसान की मदद ले सकते हैं। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के किसी रिटायर्ड चीफ जस्टिस को आर्बिट्रेटर बनाया जा सकता है, जिससे ये तय होगा कि ट्रस्टी चुनने का अधिकार टाटा की वसीयत लागू करवाने वाले लोगों, टाटा फैमिली या टाटा ट्रस्ट के सदस्यों में से किसके पास है?
रतन टाटा ने सोशल वर्क के लिए साल 2022 में आरटीईएफ और रतन टाटा एंडोमेंट ट्रस्ट संस्थाएं बनायी थी, जिन्हें उनके पैसों द्वारा चलाया जा रहा था। आरटीईएफ में देश के सबसे बड़े बिजनेस घराने टाटा ग्रुप की होल्डिंग कंपनी टाटा संस में रतन टाटा की 0.38 प्रतिशत हिस्सेदारी थी। रतन टाटा के पास व्यक्तिगत संपत्ति हुरुन रिच लिस्ट के अनुसार, 7900 करोड़ रुपये थी। हालांकि उनकी कंपनियों में हिस्सेदारियों के कारण उनकी टोटल नेटवर्थ सूत्रों के अनुसार, 15000 करोड़ रुपये से भी ज्यादा थी।
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रतन टाटा अपनी ज्यादातर कमाई का उपयोग समाजसेवा के लिए करते थे। ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि उनकी ज्यादातर प्रॉपर्टी को आरटीईएफ मैनेज करेगा जबकि बाकी प्रॉपर्टी को ट्रस्ट देखेगा। साथ ही उनकी लग्जरी कारों सहित सभी गाड़ियों को भी नीलाम करके जो पैसे आएगे, उन्हें आरटीईएफ में डाला जाएगा। रतन टाटा चाहते थे कि उनके पैसों से समाज का कल्याण हो।
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