शेयर बाजार में गिरावट (फोटो- सोशल मीडिया)
Share Market Fall: करोबारी हफ्ते का पहला दिन शेयर बाजार के लिए उथल-पुथल भरा रहा। सोमवार को सेंसेक्स और निफ्टी में भारी गिरावट देखने को मिल रही है। सेंसेक्स जहां 400 अंक लुड़क गया, वहीं नेशनल स्टॉक एक्सचेंज निफ्टी की हालात भी कुछ खास अच्छी नहीं रही और वो 25,098 के नीचे बंद हुए। बाजार बंद होने के समय TCS और Infosys जैसे आईटी स्टॉक्स लाल निशान पर बिजनेस कर रहे थे।
इससे पहले, सुबह बाजार ने खुलने से पहले गिरावट के संकेत दे दिए थे। सोमवार को सेंसेक्स अपने पिछले बंद 82,500.47 की तुलना में मामूली बढ़त के साथ 82,537,84 पर अंक पर खुले, लेकिन बाजार अपनी बढ़त ज्यादा देर तक कायाम नहीं रख पाया और नीचे गिर गया। बाजार बंद होने तक सेंसेक्स 247 अंकों की गिरावट यानी 82,253.46 पर व्यापार कर रहा था। वहीं, निफ्टी अपने 67.55 यानी 25,082.30 अंक नीचे बिजनेश कर रहा था।
सोमवार को बाजार में आई गिरावट का सबसे गहरा असर आईटी सेक्टर पर पड़ा। कारोबार के दौरान निफ्टी आईटी इंडेक्स 1% से ज्यादा फिसल गया और यह दिन का सबसे कमजोर प्रदर्शन करने वाला सेक्टोरल इंडेक्स बन गया। इस गिरावट की मुख्य वजह TCS के कमजोर तिमाही नतीजे और कंपनी की भविष्य की ग्रोथ को लेकर बनी सतर्कता रही। इस माहौल का असर पूरे आईटी सेक्टर पर दिखा, जिसमें विप्रो, इंफोसिस, एचसीएल टेक्नोलॉजीज, टेक महिंद्रा और एलटीआई माईंडट्री जैसे दिग्गज शेयरों में 1% से 2% तक की गिरावट दर्ज की गई।
इसके अलावा, विदेशी संस्थागत निवेशक (FIIS) लगातार भारतीय शेयर बाजारों से पैसे निकालना भी बाजार के गिरने की एक बड़ी वजह है। साथ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से यूरोपीय यूनियन और मैक्सिको से इंपोर्ट पर 1 अगस्त से 30 प्रतिशत टैरिफ लगाने के ऐलान के बाद ग्लोबल ट्रेड में तनाव बढ़ गया है। इसके चलते भी निवेशक पैसा लगाने से बच रहे हैं।
ये भी पढ़े: आंध्र प्रदेश में बनेगा 1,000 करोड़ का नया AI+ परिसर, शिक्षा क्षेत्र में बदलाव
अंतरराष्ट्रीय बाजार में ब्रेंट क्रूड की कीमत 0.17% बढ़कर 70.48 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गई है। कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें आमतौर पर भारत के आयात बिल और महंगाई पर दबाव डालती हैं, जिससे बाजार की धारणा (सेंटीमेंट) प्रभावित होती है। इसी बीच, सोमवार को शुरुआती कारोबार में भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 17 पैसे कमजोर होकर 85.97 पर आ गया। रुपये में यह गिरावट डॉलर की मजबूती और विदेशी संस्थागत निवेशकों (FIIs) की लगातार पूंजी निकासी की वजह से देखी गई है।