नेपाल में आंदोलन से अरबों का नुकसान, (कॉन्सेप्ट फोटो)
Nepal Violence: भारत के पड़ोसी देश नेपाल में जेन-जी आंदोलन ने तख्तापलट कर दिया। जिसके बाद सुशीला कार्की को अंतरिम प्रधानमंत्री बनाया गया है। रविवार को उन्होंने अपना कार्यभार ग्रहण किया। पिछले एक सप्ताह के दौरान नेपाल में हुई हिंसक प्रदर्शनों और आगजनी की घटनाओं से देश को काफी नुकसान हुआ है। नेपाल में इस समय पर्यटकों की भीड़ उमड़ती है। त्योहारी सीजन के बीच बड़ी संख्या में प्रवासी छुट्टियां मनाने के लिए देश लौटते हैं। इस दौरान होने वाली कमाई देश की अर्थव्यवस्था के लिए काफी अहम है।
लेकिन जेन-जी की सत्ता विरोधी आंदोलन ने इसे काफी नुकसान पहुंचाया है। हिंसा, तोड़फोड़ और आगजनी के कारण अरबों का संपत्ति राख हो गया है जबकि, तकरीबन 10 हजार लोग बेरोजगार हो गए हैं। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि नेपाल को इस आंदोलन की भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। इस वित्तीय वर्ष में नेपाल की विकास दर एक फीसदी से नीचे रह सकती है।
नेपाल में इन दिनों खुदरा विक्रेताओं से लेकर होटलों, एयरलाइंस से लेकर परिवहन संचालकों तक हर सेक्टर पर इस आंदोलन का असर स्पष्ट रूप से देखा जा रहा है। देश के मशहूर पर्यटन स्थल जैसे कि दरबार स्क्वायर, पोखरा, भैरहवा और चितवन में सामान्य से कहीं ज्यादा सन्नाटा छाया हुआ है। कैलाश मानसरोवर यात्रा करने वालों की संख्या भी घटने के आसार हैं। हर तरफ क्षतिग्रस्त होटल, धुएं से काली पड़ी इमारतें, जले वाहन एक आम नजारा बन चुके हैं।
अमर उजाला की रिपोर्ट के मुताबिक, नेपाली उद्योग परिसंघ के अध्यक्ष बीरेंद्र राज पांडे ने बताया कि वर्तमान स्थिति से निकलने के लिए हमे आगे बढ़ना होगा। अच्छी बात यह है कि कई उद्यमियों ने इस नुकसान से उबरने का आत्मविश्वास दिखाया है। भट-भटेनी सुपरमार्केट ने एक सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा कि हमने जो विनाश झेला है वह बहुत बड़ा है। इसके बावजदू हम फिर उठ खड़े होने को लेकर संकल्पित हैं। भट-भटेनी पुनर्निर्माण करेगा। आपके साथ, हम और मजबूत होकर वापसी करेंगे। साथ मिलकर उज्जवल भविष्य का निर्माण करेंगे।
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काठमांडो पोस्ट के मुताबिक, अर्थशास्त्रियों का मानना है कि आंदोलन से करीब 3 लाख करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचा। यह नेपाल के डेढ़ साल के बजट के बराबर है। सरकारी व निजी क्षेत्र के बुनियादी ढांचे और सरकारी दस्तावेज को नुकसान कुल सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के करीब आधे के बराबर हैं। अर्थशास्त्री चंद्र मणि अधिकारी का कहना है, मोटे तौर पर इस बार आर्थिक वृद्धि दर 1 प्रतिशत से नीचे रह सकती है।