प्रतीकात्मक तस्वीर
नई दिल्ली: विदेशी बाजारों में तेजी के बावजूद सोमवार को मांग कमजोर रहने से देश के प्रमुख बाजारों में मूंगफली तिलहन, सोयाबीन तेल-तिलहन, कच्चा पामतेल (सीपीओ) एवं पामोलीन तेल गिरावट के साथ बंद हुए। बिनौला खल में गिरावट के बीच कारोबारी धारणा प्रभावित रहने से जहां सरसों तेल-तिलहन और बिनौला तेल के दाम पूर्व-स्तर पर बने रहे, वहीं मूंगफली तेल के दाम में सुधार देखने को मिला। बाजार सूत्रों ने कहा कि मूंगफली में खाद्यतेल की तुलना में खल अधिक निकलता है और बिनौला खल का दाम टूटने से बाजार की कारोबारी धारणा खराब हो रही है।
ऐसी स्थिति में मांग कमजोर होने से सरसों और मूंगफली खल के दाम भी टूट रहे हैं। खल का दाम टूटने से मूंगफली तिलहन में गिरावट है। जबकि मूंगफली तेल के दाम में सुधार है। सूत्रों ने कहा कि खल नहीं बिकने पर कारोबारी उस घाटे की भरपाई तेल का दाम बढ़ाकर करते हैं। ऐसे में सरकार को इस पर नजर रखनी चाहिए कि कपास नरमा की बिक्री के समय कौन लोग ‘सिंडिकेट’ बनाकर किसानों का माल सस्ते में लेना चाहते हैं। ऐसे वायदा कारोबार के सट्टेबाजों को सख्ती से निपटने की आवश्यकता है।
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सूत्रों के मुताबिक, बिनौला खल के दाम तोड़े जाने की वजह से मुर्गीदाने में उपयोग होने वाले सोयाबीन डी-आयल्ड केक (डीओसी) की भी मांग घटी है। सोयाबीन उत्पादन में मुख्य खेल डीओसी का ही होता है क्योंकि सोयाबीन में भी तेल कम और डीओसी अधिक निकलता है। इसका निर्यात कर लाभ कमाने के चक्कर में किसान सोयाबीन की बुवाई करते हैं। कारोबारी सूत्रों ने कहा कि बिनौला खल का दाम टूटने का असर बाकी तेल-तिलहनों पर भी आएगा। अगर सरकार ने इस पर समुचित ध्यान नहीं दिया तो यह घरेलू तिलहन उत्पादन को प्रभावित करेगा।
आज सरकार ने जो बुवाई के आंकड़े जारी किये हैं, उसमें तिलहन खेती के रकबे में कमी आने का उल्लेख किया गया है। सूत्रों ने कहा कि विदेशों में मजबूती रहने के बावजूद कारोबारियों की कमजोर मांग होने से मूंगफली तिलहन, सोयाबीन तेल-तिलहन, सीपीओ एवं पामोलीन के दाम में गिरावट आई। जबकि कम आवक के बीच सरसों तेल-तिलहन और बिनौला तेल के दाम पूर्व-स्तर पर बने रहे। खल का दाम टूटने से मूंगफली तेल के दाम में सुधार रहा।