नागपुर. सीताबर्डी पुलिस थाना में दर्ज आपराधिक मामले में गिरफ्तारी से बचने के लिए पहले निचली अदालत में जमानत के लिए अर्जी दायर की गई. किंतु जिला सत्र न्यायालय द्वारा राहत नहीं देने पर डॉ. समीर पालतेवार ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. याचिका पर सुनवाई के बाद न्यायाधीश विजय जोशी ने सरकारी पक्ष की दलीलों को स्वीकार कर जमानत देने से इनकार कर दिया. साथ ही अदालत ने हाई कोर्ट के आदेश को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देने के लिए 3 सप्ताह तक का समय प्रदान कर तब तक गिरफ्तारी पर अस्थायी रोक लगा दी.
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अविनाश गुप्ता, अधि. आकाश गुप्ता और शिकायतकर्ता गणेश चक्करवार की ओर से अधि. श्याम देवानी ने पैरवी की. सरकारी वकील की ओर से अदालत को बताया गया कि मामले में भारी वित्तीय गड़बड़ी होने के कारण पुलिस ने इस मामले की जांच ईओडब्ल्यू को सौंप दी थी. जिसके बाद हुई जांच के दौरान 53 बिलों में सुधार किए जाने का खुलासा हुआ है. यहां तक इससे अधिक मामले उजागर होने की संभावना है.
अभियोजन के अनुसार वीआरजी हेल्थ केअर प्रा. लिमिटेड कम्पनी द्वारा सेंट्रल बाजार रोड रामदास पेठ में मेडिट्रिना अस्पताल का संचालन किया जाता है. कम्पनी में याचिकाकर्ता सीईओ है और 67 प्रतिशत के हिस्सेदार है. जबकि शिकायतकर्ता 33 प्रतिशत के हिस्सेदार है. याचिकाकर्ता की ओर से ही अस्पताल का पूरा संचालन देखा जाता है.
अस्पताल में कुछ सरकारी योजना के तहत इलाज कराया जाता है. जिसमें भारी गड़बड़ी होने की सूचना मिलने के बाद चक्करवार ने 19 फरवरी 2021 को बर्डी पुलिस में शिकायत दर्ज की थी. शिकायत में बताया गया कि अस्पताल में इलाज कराने आए तीन मरीजों को छुट्टी देते समय बिल बराबर दिए गए, लेकिन इन बिलों की कम्प्यूटर में एन्ट्री करते समय कम निधि दर्ज की गई.
गत सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता गुप्ता ने कहा कि याचिकाकर्ता और उसके परिवार के सदस्यों की इस अस्पताल में 67 प्रतिशत हिस्सेदारी है. शिकायतकर्ता के साथ याचिकाकर्ता का लंबे समय से कुछ मामलों को लेकर विवाद चल रहा है. दोनों पक्षों की लंबी दलीलों के बाद अदालत ने आदेश में कहा कि पूरी जांच के बाद ही किस हद तक धांधली की गई, इसे पुलिस उजागर कर सकेगी. किंतु जांच के बाद वर्तमान में पुख्ता सबूत जुटाए गए हैं. जिससे याचिकाकर्ता की जांच जरूरी है.
चूंकि याचिकाकर्ता अस्पताल का इंचार्ज है. अत: पूरे स्टॉफ पर उसका दबाव होने से इनकार नहीं किया जा सकता है. ऐसे में दस्तावेजों के साथ छेड़छाड़ और यहां होनेवाली गतिविधियों की जानकारी पाना उसके लिए आसान है. केवल डॉक्टर होने तथा भारी अचल सम्पत्ति होने के आधार पर उसे राहत नहीं दी जा सकती है.