क्यों भैरव बिना अधूरी होती है देवी की पूजा, जानें यहां

कंजक पूजा नवरात्रि की अष्टमी या नवमी के दिन की जाती है।

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इस दिन नौ कन्याओं की पूजा के साथ-साथ काल भैरव के बाल रूप की भी पूजा की जाती है।

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ऐसी मान्यताएं हैं कि काल भैरव के बिना मां दुर्गा की पूजा और नौ दिन का व्रत अधूरा है।

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इसलिए जो लोग नवरात्रि के दौरान विशेष सिद्धियों के लिए मां दुर्गा की पूजा करते हैं, वे बाबा भैरव की पूजा जरूर करते हैं।

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यही कारण है कि मां दुर्गा के सभी स्वरूपों के मंदिरों के पास काल भैरव का मंदिर भी है।

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वही गृहस्थ लोग बाबा भैरव की पूजा नहीं करते हैं और ना ही उन्हें घर में स्थापित करते हैं। इन्हें तंत्र का देवता माना जाता है।

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हालांकि, बटुक भैरव या बाल भैरव की पूजा गृहस्थ लोग कर सकते हैं।

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इसके समाधान के लिए तीनों लोकों के देवता ऋषि के पास पहुंचे।

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इसके समाधान के लिए तीनों लोकों के देवता ऋषि के पास पहुंचे।

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ऋषि-मुनियों ने चर्चा की और बताया कि भगवान शिव ही सर्वश्रेष्ठ हैं।

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यह सुनकर ब्रह्मा जी क्रोधित हो गए और भगवान शिव के सम्मान को ठेस पहुंचाने लगे, जिससे शिवजी क्रोधित हो गये।

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कहा जाता है कि शिव के इसी क्रोध से काल भैरव का जन्म हुआ।

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भैरव का रूप भयानक अवश्य है, लेकिन जो भी सच्चे मन से उनकी पूजा करता है, उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी वे स्वयं लेते हैं।

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