By: Simran Singh
NavBharat Live Desk
दक्षिण भारत में सोने की पायल पहनना क्यों सही माना जाता है
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दक्षिण भारत में सोना केवल आभूषण नहीं, बल्कि शुभता और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। यहाँ सोने की पायल को भी देवी लक्ष्मी का आशीर्वाद समझा जाता है।
कई दक्षिण भारतीय समुदायों में सोने की पायल पहनना परंपरा का हिस्सा है, खासकर विवाह और धार्मिक अवसरों पर।
यहाँ सोने को अपवित्र नहीं बल्कि दैवीय धातु माना जाता है, और महिलाएं इसे शरीर के हर हिस्से में पहन सकती हैं, यदि श्रद्धा और मर्यादा के साथ पहना जाए।
सोने की पायल पहनना सामाजिक रूप से सम्मान और आर्थिक स्थिति का प्रतीक भी है।
उत्तर भारत में सोने की पायल पहनना क्यों गलत या अशुभ माना जाता है
उत्तर भारतीय परंपराओं में सोने को देवताओं और पूजा के लिए आरक्षित माना जाता है। इसे पैरों में पहनना देवताओं का अपमान समझा जाता है।
हिंदू धर्मग्रंथों में कहा गया है कि सोना भगवान विष्णु का प्रतीक है, इसलिए इसे शरीर के निचले हिस्से (पैरों) में धारण करना अशुभ और अनादरपूर्ण माना जाता है।
उत्तर भारत में पायल हमेशा चांदी की पहनी जाती है क्योंकि चांदी को धरती और शीतलता का प्रतीक माना गया है, जो पैरों से जुड़ी ऊर्जा को संतुलित करती है।
उत्तर भारत में परंपराएं अधिक संस्कार और धार्मिक अनुशासन पर आधारित हैं, जबकि दक्षिण भारत में आभूषणों को सौंदर्य और समृद्धि के दृष्टिकोण से देखा जाता है।