बद्रीनाथ में क्यों नहीं बजाया जाता शंख, जानिए इसका रहस्य!
हिंदू धर्म में शंख को बहुत पवित्र माना जाता है, आज भी मंदिर से लेकर घर तक शंख बजाने की परंपरा का पालन किया जाता है।
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इस महत्व के बावजूद आपको ये जानकर हैरत होगी कि बद्रीनाथ में शंख बजाना वर्जित है।
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बद्रीनाथ उत्तराखंड के चमोली जिले में अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है। भगवान बद्री विशाल को पंच बद्री के पहले बद्री केरूप में पूजा जाता है।
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ऐसे प्रमाण मौजूद है कि यह मंदिर 7वीं से 9वीं सदी के बीच बना था। इस मंदिर में भगवान बद्रीनारायण की अलौकिक और दिव्य प्रतिमा स्थापित है।
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ऐसी मान्यता है कि 8वीं शताब्दी में आदिगुरु शंकराचार्य ने इस मंदिर को नारद कुंड से निकालकर स्थापित किया था।
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कपाट खुलने के बाद यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है और दूर-दूर से भक्त भोलेनाथ का आशीर्वाद लेने आते हैं।
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इस मंदिर में शंख नहीं बजाया जाता, इसके पीछे धार्मिक, प्राकृतिक और वैज्ञानिक कारण है।
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धार्मिक मान्यता अनुसार एक बार मां लक्ष्मी बद्रीनाथ में बने तुलसी भवन में ध्यान लगाकर बैठी थीं, तभी भगवान विष्णु ने शंखचूर्ण नामक राक्षस को मारने के बाद भी अपनी जीत पर शंखनाद नहीं किया, क्योंकि वह लक्ष्मी जी के ध्यान में विघ्न नहीं डालना चाहते थे।
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वैज्ञानिक आधार के अनुसार यदि बद्री क्षेत्र में शंख बजाया जाए तो उसकी ध्वनि बर्फ से टकराकर गूंज पैदा कर सकती है।
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इससे बर्फ में दरारें पड़ सकती हैं और हिमस्खलन का खतरा भी पैदा हो सकता है, इसलिए यहां शंख नहीं बजाया जाता।
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वैज्ञानिकों का कहना है कि एक खास तरह की आवाजें पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचाती हैं।