By - Simran Singh
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मुहब्बत की इस निशानी को मुगल बादशाह शाहजहां ने अपनी प्रेमिका बेगम मुमताज की याद में बनवाया था।
बेगम मुमताज का मकबरा भी इसी में दफन है, जब बेगम मुमताज को यहां दफनाया गया था, तब इसका नाम कुछ और था।
जब बेगम मुमताज को इसमें दफनाया गया था, तब मुगल बादशाह शाहजहां ने इस इमारत का नाम 'रौजा-ए-मुनव्वरा' रखा था।
बाद में इसका नाम बदलकर ताजमहल रख दिया गया, जिसकी चर्चा पूरी दुनिया में होती है।
ताजमहल का निर्माण 1632 में शुरू हुआ था और यह 1648 में बनकर तैयार हुआ था