आज से पितृ पक्ष शुरू, पितरों की आत्मा की शांति के लिए करें तर्पण

हिंदू कैलेंडर के अनुसार, पितृपक्ष भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि से शुरू होगा और आश्विन मास कृष्ण पक्ष की अमावस्या (14 अक्टूबर) को पितृ विसर्जन के साथ समाप्त होगा। 

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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पितरों के सम्मान और आत्मा की मुक्ति के लिए पितृपक्ष तर्पण और श्राद्ध किया जाता है।

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नियमानुसार जिस वर्ष जिस तिथि को पूर्वजों की मृत्यु हुई हो, उनका श्राद्ध पितृपक्ष की उसी तिथि को किया जाता है।

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भाद्रपद पूर्णिमा पर केवल उन्हीं पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी मृत्यु पूर्णिमा तिथि को हुई हो।

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पितृ पक्ष के दौरान प्रतिदिन गाय को भोजन खिलाना चाहिए। पूर्णिमा से अमावस्या तक शाम के समय घी का दीपक जलाएं, जिसकी लौ दक्षिण दिशा की ओर होनी चाहिए।

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भोजन का पहला निवाला कौवे के लिए रखें। तिथि के अनुसार तर्पण और पिंडदान करें और ब्रह्मभोज का आयोजन करें।

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तर्पण और श्राद्ध सूर्योदय के बाद और सूर्यास्त से पहले करें। पितरों के निमित्त जरूरतमंद लोगों को भोजन और वस्त्र दान करें।

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ऐसी मान्यता है कि महाभारत काल में भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को श्राद्ध कर्म की शुरुआत के बारे में बताया था।

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ऐसी मान्यता है कि महाभारत काल में भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को श्राद्ध कर्म की शुरुआत के बारे में बताया था।

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ऐसी मान्यता है कि महाभारत काल में भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को श्राद्ध कर्म की शुरुआत के बारे में बताया था।

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प्राचीन काल में सबसे पहले अत्रि मुनि ने महर्षि निमि को श्राद्ध का ज्ञान दिया, फिर ऋषि निमि ने श्राद्ध किया और उनके बाद अन्य ऋषि भी श्राद्ध करने लगे।

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तभी से पितरों के सम्मान और आत्मा की मुक्ति के लिए श्राद्ध करने की परंपरा लोकप्रिय हो गई।

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पितृपक्ष के दौरान प्याज-लहसुन, मांसाहारी भोजन और नशीली चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए। तामसिक चीजों का सेवन करने से पितर नाराज होते हैं।

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पितृपक्ष के दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। कोई जश्न या उत्सव नहीं होना चाहिए। इस समय सादा जीवन जीकर पितरों को श्रद्धांजलि देनी चाहिए।

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पितृपक्ष के दौरान कोई भी नया काम शुरू न करें। साथ ही कोई नया कपड़ा, आभूषण, कार आदि भी न खरीदें। पितृपक्ष के दौरान नाखून, बाल नहीं काटने चाहिए और शेविंग करने से भी बचना चाहिए।

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