By - Deepika Pal Image Source: Pinterest
मकर संक्रांति से एक दिन पहले चंबा में लोहड़ी मनाए जाने की अनूठी परंपरा यानि खूनी लोहड़ी मनाई जाती है। यह परंपरा रियासत काल से है।
दसवीं शताब्दी में भरमौर से आए राजा साहिल वर्मन ने चंबा आकर अपनी रियासत को बसाया था।
इस रियासत में भूत प्रेतों का वास होने के कारण रियासत के लोग बहुत परेशान थे इनसे मुक्ति पाने के लिए मढिया बनाई थी।
शिवजी का प्रतीक माने जाने वाली राज मढ़ी से निकाला जानें वाला त्रिशूल नुमा मुशाहरा (मशाल) जिसे राज मुशहरा कहते हैं वह लोगों द्वारा निकाला जाता था।
चौंतड़ा मुहल्ला में भी इसी तरह का एक और मुशाहरा तैयार किया जाता है जो बजीर के नाम से जाना जाता है 11 बजे गाजे-बाजे के साथ डूबोने निकलते है।
बजीर मढ़ी से भी मुशाहरा चल पड़ता है और एक जगह पर इन दोनों का मिलन करवाया जाता है।बजीर वापिस अपनी मढ़ी में चला जाता है और राज मशायरा पूरे शहर की मंडियों में डुबाया जाया है।
यह राज मुशायरा दूसरों की मढ़ियों में डुबाया जाता है तो वहां जदोजहद में काफी लोग चोटिल भी हो जाते हैं इस दौरान निकले खून को राक्षसों पर चढ़ाया जाता है।