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लोहड़ी नहीं यहां मनाई जाती है 'खूनी लोहड़ी', जान लीजिए चौंका देने वाली परंपरा

मकर संक्रांति से एक दिन पहले चंबा में लोहड़ी मनाए जाने की अनूठी परंपरा यानि खूनी लोहड़ी मनाई जाती है। यह परंपरा रियासत काल से है।

खूनी लोहड़ी

दसवीं शताब्दी में भरमौर से आए राजा साहिल वर्मन ने चंबा आकर अपनी रियासत को बसाया था।

रियासत 

इस रियासत में भूत प्रेतों का वास होने के कारण रियासत के लोग बहुत परेशान थे इनसे मुक्ति पाने के लिए मढिया बनाई थी।

भूत-प्रेतों का डेरा

शिवजी का प्रतीक माने जाने वाली राज मढ़ी से निकाला जानें वाला त्रिशूल नुमा मुशाहरा (मशाल) जिसे  राज मुशहरा कहते हैं वह लोगों द्वारा निकाला जाता था।

मुशाहरा

चौंतड़ा मुहल्ला में भी इसी तरह का एक और मुशाहरा तैयार किया जाता है जो बजीर के नाम से जाना जाता है 11 बजे गाजे-बाजे के  साथ डूबोने निकलते है।

बजीर नाम

बजीर मढ़ी से भी मुशाहरा चल पड़ता है और एक जगह पर इन दोनों का मिलन करवाया जाता है।बजीर वापिस अपनी मढ़ी में चला जाता है और राज मशायरा पूरे शहर की मंडियों में डुबाया जाया है।

करवाया जाता है मिलन 

यह राज मुशायरा दूसरों की मढ़ियों में डुबाया जाता है तो वहां जदोजहद में काफी लोग चोटिल भी हो जाते हैं इस दौरान निकले खून को राक्षसों पर चढ़ाया जाता है।

अनोखी परंपरा