रावण को क्यों कहा जाता है पहला कांवड़िया, जानिए कांवड़ यात्रा से जुड़ी मान्यताएं
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पहली कांवर को लेकर कई तरह की कहानियां हैं और कुछ कहानियों के अनुसार रावण पहली बार कांवड़ लेकर आया था।
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पुराणों के अनुसार कांवड़ की परंपरा समुद्र मंथन के समय ही पड़ गई, तब जब मंथन में विष निकला तो संसार इससे त्राहि-त्राहि करने लगा।
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तब भगवान शिव ने इसे अपने गले में रख लिया, इससे शिव के अंदर जो नकारात्मक ऊर्जा ने जगह बनाई, उसको दूर करने के लिए
रावण ने तप किया।
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फिर वह पैदल गंगाजल लेने गया और लौटने पर गंगाजल से पूरा महादेव मंदिर में भगवान शिव का अभिषेक किया, जिससे शिव इस ऊर्जा से मुक्त हो गए।
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माना जाता है कि इस वजह से ही कांवड़ यात्रा शुरू हुई थी, जिसके बाद शिव भक्त अलग-अलग जगहों से जल लाकर भगवान शिव
को चढ़ाते हैं।
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कई मान्यताओं के हिसाब से कांवड़ की शुरुआत परशुराम ने की थी।
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कुछ लोगों का मानना है कि त्रेता युग में श्रवण कुमार ने कांवड़ यात्रा की शुरुआत की थी।
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ये भी कहा जाता है कि सबसे पहली बार भगवान राम कांवड़
लेकर आये थे।
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उन्होंने झारखंड के सुल्तानगंज से कांवड़ में गंगाजल भरकर, बाबा धाम में शिवलिंग का जलाभिषेक किया था, जिसे पहली कांवड़
माना जाता है।
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मान्यता जो भी हो, लेकिन सावन में गंगाजल लेकर शिवालय में चढ़ाने की इस यात्रा को कांवड़ यात्रा
कहा जाता है।
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