By - shiwani mishra
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वो महिलाएं जो इससे होकर गुजरी हैं उन्हें इसका दर्द जिंदगी भर झेलना पड़ता है। ये प्रथा क्रूर ही नहीं आसामाजिक भी है।
महिलाओं का खतना रूढ़िवादियों की एक बेहद दर्दनाक प्रक्रिया होती है। इसमें महिलाओं के जननांगों को विकृत कर दिया जाता है।
रूढ़िवादी मुस्लिमों में खतना के बाद महिलाओं को 'शुद्ध' या 'शादी के लिए तैयार' माना जाता है।
दाउदी बोहरा मुस्लिम समुदाय की महिलाएं आज भी इस दंश को झेल रही हैं। इसके खिलाफ कई मुहिम भी चलाई गई हैं।
लेकिन सच्चाई को छुपाया नहीं जा सकता है। ये धार्मिक महत्व रखता है, लेकिन इसकी कोई जरूरत नहीं होती है।
UNICEF मानती है कि दुनिया भर में 2 करोड़ से ज्यादा लड़कियां ऐसी हैं जिन्हें किसी ना किसी तरह का खतना झेलना पड़ा है।
ये अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकारों के खिलाफ माना जाता है। इससे लड़कियों को जिंदगी भर का साइकोलॉजिकल ट्रॉमा भी हो जाता है।