देश की राजधानी दिल्ली में एक बार फिर अन्नदाता दस्तक दे रहे हैं। हजारों किसान एक बार फिर दिल्ली कूच करने को तैयार हुए।
किसानों ने इसे 'चलो दिल्ली मार्च' का नाम दिया है, लेकिन इसे किसान आंदोलन 2.0 भी कहा जा रहा है।
‘दिल्ली चलो’ मार्च रोकने के लिए बैठकें भी हुई जो बेनतीजा रही क्योंकि किसान अपने कदम को वापस लेने के लिए तैयार नहीं है।
दरअसल, इस किसान आंदोलन का पैटर्न 2020-2021 में हुए किसान आंदोलन से काफी मिलता जुलता है।
आइए आपको बताते हैं कि किन मांगों को लेकर किसान संगठन बार-बार आंदोलन कर रहे है।
किसानों की सबसे खास मांग न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के लिए कानून बनना है।
किसान स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने की मांग है साथ ही आंदोलन में शामिल किसान कृषि ऋण माफ करने की मांग भी कर रहे हैं।
किसान लखीमपुर खीरी हिंसा के पीड़ितों को न्याय दिलाने और भारत को डब्ल्यूटीओ से बाहर निकाले जाने की मांग कर रहे हैं।
किसानों की मांग कृषि वस्तुओं, दूध उत्पादों, फलों, सब्जियों और मांस पर आयात शुल्क कम करने के लिए भत्ता बढ़ाने की भी है।
किसानों की मांग कृषि वस्तुओं, दूध उत्पादों, फलों, सब्जियों और मांस पर आयात शुल्क कम करने के लिए भत्ता बढ़ाने की भी है।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में सुधार के लिए सरकार की ओर से स्वयं बीमा प्रीमियम का भुगतान करना, सभी फसलों को योजना का हिस्सा बनाना
नुकसान का आकलन करते समय खेत एकड़ को एक इकाई के रूप में मानकर नुकसान का आकलन करना भी उनकी मांग है।
भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 को उसी तरीके से लागू किया जाना।
भूमि अधिग्रहण के संबंध में केंद्र सरकार की ओर से राज्यों को दिए गए निर्देशों को रद्द किया जाना इनकी मांग है।
कीटनाशक, बीज और उर्वरक अधिनियम में संशोधन करके कपास सहित सभी फसलों के बीजों की गुणवत्ता में सुधार किया जाना मांग में शामिल है।
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