शिव जी ने क्यों किया था विष का पान? जानें क्यों कहा जाता है नीलकंठ?

पुराणों के अनुसार देवताओं और राक्षसों के बीच एक बार अमृत के लिए क्षीरसागर में समुद्र मंथन हुआ था।

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इस मंथन से लक्ष्मी, शंख, कौस्तुभमणि, ऐरावत, पारिजात, उच्चैःश्रवा, कामधेनु, कालकूट, रंभा एक अप्सरा, वारुणी मदिरा, चंद्रमा, धन्वंतरि, अमृत और कल्पवृक्ष जैसे 14 रत्न निकले।

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समुद्र मंथन से निकली इन बहुमूल्य वस्तुओं को देवताओं और दानवों ने आपस में बराबर बांट लिया।

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इस विष की एक बूंद पूरी सृष्टि में तबाही मचा सकती थी। तब देवताओं की प्रार्थना पर भगवान शिव ने उस भयानक विष को अपने शंख में भरकर पी लिया।

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देवताओं की विनती पर शिव जी विष पी तो गए, लेकिन ये विष उन्होंने गले से नीचे नहीं उतारा।

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इस कारण शिव जी का गला नीला पड़ गया और तभी से उन्हें नीलकंठ कहा जाने लगा, अर्थात नीले गले वाला।

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सृष्टि की रक्षा के लिए शिव जी ने वह विष पी लिया। भगवान शिव का यह कृत्य उनकी निस्वार्थता और मानवता के प्रति समर्पण का प्रतीक माना जाता है।

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सृष्टि की रक्षा के लिए शिव जी ने वह विष पी लिया। भगवान शिव का यह कृत्य उनकी निस्वार्थता और मानवता के प्रति समर्पण का प्रतीक माना जाता है।

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