जानिए कब मानते हैं सिंदूर खेला और क्या है इसका महत्व?
पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा की सबसे खास परंपराओं में से एक है सिन्दूर खेला।
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नवरात्रि के आखिरी दिन दुर्गा पूजा के अवसर पर बंगाली समुदाय की महिलाएं मां दुर्गा को सिन्दूर चढ़ाती हैं।
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इसके बाद पंडाल में मौजूद सभी सुहागिन महिलाएं एक-दूसरे को वही सिन्दूर लगाती हैं।
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मान्यता है कि यह त्योहार मां की विदाई के रूप में खुशी-खुशी मनाया जाता है।
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सिन्दूर खेला के दिन महिलाएं दुर्गा मां के गालों को पान के पत्ते से छूकर और माथे पर सिन्दूर लगाकर अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं।
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इसके बाद मां को पान और मिठाई का भोग लगाया जाता है।
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सिन्दूर खेला के दिन बंगाली समुदाय में देवी दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए एक विशेष प्रकार का धुनुची नृत्य किया जाता है।
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सिन्दूर खेला त्योहार मनाने के पीछे लोगों की मान्यता है कि ऐसा करने से मां दुर्गा उनके सुहाग की उम्र लंबी कर देंगी।
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बंगाल की मान्यताओं के अनुसार, मां दुर्गा 10 दिनों के लिए अपने मायके आती हैं, जिसे दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है।
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इसके बाद 10वें दिन माता पार्वती अपने घर यानि कैलाश पर्वत पर भगवान शिव के पास जाती हैं और उन्हें सिन्दूर चढ़ाकर विदा किया जाता है।
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