पितरों की मुक्ति का अंतिम स्थान ब्रह्मकपाली, जानें यहां पर श्राद्ध का महत्व

कहते हैं कि गया में श्राद्ध करने के उपरांत अंतिम श्राद्ध उत्तराखंड के बद्रिकाश्रम क्षेत्र के ब्रह्मकपाली में किया जाता है, जो गया के बाद सबसे महत्वपूर्ण स्थान है।

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ऐसा माना जाता है कि जिन पितरों को गया में या अन्य किसी स्थान पर मुक्ति नहीं मिलती उनका यहां पर श्राद्ध करने से मुक्ति मिल जाती है।

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यह स्थान बद्रीनाथ धाम के पास अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है।

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मान्यता है कि गोत्र हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए स्वर्गारोहिणी यात्रा पर जाते हुए पांडवों ने ब्रह्मकपाल में ही अपने पितरों को तर्पण किया था।

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ऐसा माना जाता है कि भगवान ब्रह्मा, ब्रह्मा कपाल के रूप में निवास करते हैं।

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किसी काल में ब्रह्मा जी के पांच सिर में से एक सिर कटकर यहीं गिरा था।

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अलकनंदा नदी के तट पर ब्रह्माजी के सिर के आकार की शिला आज भी विद्यमान है।

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ब्रह्मकपाल को पितरों की मोक्ष प्राप्ति का सर्वोच्च तीर्थ (महातीर्थ) कहा गया है।

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पुराणों में उल्लेख है कि ब्रह्मकपाल में पिंडदान करने के बाद फिर कहीं पिंडदान की जरूरत नहीं रह जाती।

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स्कंद पुराण के अनुसार पिंडदान के लिए गया, पुष्कर, हरिद्वार, प्रयागराज व काशी भी श्रेयस्कर हैं।

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लेकिन भू-वैकुंठ बदरीनाथ धाम स्थित ब्रह्मकपाल में किया गया पिंडदान इन सबसे आठ गुणा ज्यादा फलदायी है।

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