2 बार बिहार के सीएम रहे कर्पूरी ठाकुर की 24 जनवरी को 100वीं जयंती है।
मोदी सरकार ने ठाकुर को देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न देने का एलान किया है। ठाकुर सामाजिक न्याय के वाहक माने जाते हैं
भले ही उन्होंने 2 बार बिहार जैसे राज्य की कमान संभाली, लेकिन अपनी सादगी को कभी अलग नहीं किया।
उनके सादगीपूर्ण जीवन के कई किस्से बिहार की समेत देश की राजनीति में अक्सर चर्चा में आते रहे हैं।
2 बार मुख्यमंत्री रहने के बावजूद ठाकुर रिक्शे से ही चलते थे, क्योंकि उनकी जायज आय कार खरीदने और उसका खर्च वहन करने की अनुमति नहीं देती थी।
ठाकुर से जुड़े कुछ लोग बताते हैं कि वह जब राज्य के CM थे तो अपने बेटे रामनाथ को पत्र लिखते थे। जिसमें सिर्फ 3 बातें ही लिखी होती थी।
पत्र में लिखा होता की, बेटे तुम इससे प्रभावित नहीं होना। कोई लोभ लालच देगा, तो उस लोभ में मत आना। मेरी बदनामी होगी।'
70 के दशक में पटना में विधायकों और पूर्व विधायकों के निजी आवास के लिए सरकार सस्ती दर पर जमीन दे रही थी।
खुद कर्पूरी ठाकुर के दल के कुछ विधायकों ने उनसे कहा कि आप भी अपने आवास के लिए जमीन ले लीजिए। उन्होंने साफ मना कर दिया।
कर्पूरी ठाकुर 1952 से लगातार विधायक रहे, पर अपने लिए उन्होंने कहीं एक मकान तक नहीं बनवाया। न ही कोई जमीन खरीद सके।
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