जानिए नवरात्रि में क्यों जरूरी है कन्या पूजन, क्या है इसका महत्व ?

देवी भागवत पुराण के अनुसार 2 वर्ष से 10 वर्ष की आयु की कन्याओं को ही पूजनीय माना जाता है।

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देवी भागवत पुराण के अनुसार 2 वर्ष से 10 वर्ष की आयु की कन्याओं को ही पूजनीय माना जाता है।

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नवरात्रि के दौरान शक्ति साधना, पूजा, अनुष्ठान आदि कन्या पूजन के बिना अधूरे रहते हैं।

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कन्या को साक्षात माँ जगदम्बा का रूप माना जाता है।

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मान्यता है कि जिस घर में त्योहारों और शुभ मांगलिक कार्यों के दौरान देव पूजन के साथ कन्या पूजन करने से वहां कभी दुख या दरिद्रता नहीं आती।

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पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान इंद्र ने भगवान ब्रह्मा से देवी भगवती को प्रसन्न करने का उपाय पूछा, तब ब्रह्माजी ने देवी को प्रसन्न करने का सबसे अच्छा तरीका कन्या की पूजा करना बताया।

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इसलिए नवरात्रि में देवी मां को प्रसन्न करने के लिए कन्याओं को नौ देवियों का रूप मानकर उनकी पूजा की जाती है।

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कन्या पूजन करने के लिए एक चौकी पर आसन बिछाकर कन्याओं को एक पंक्ति में बिठाकर पूजन करें।

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अष्टमी और नवमी के दिन कन्याओं को भोजन कराना शुभ माना जाता है।

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सूजी या आटे का हलवा माता रानी को भोग लगाने के बाद प्रसाद के रूप में कन्याओं को देना चाहिए।

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भोज के बाद सारी कन्याओं को उपहार में श्रृंगार की सामग्री देनी चाहिए।

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मान्यता है कि कन्याओं की ग्रहण की गई श्रृंगार की सामग्री सीधे देवी मां स्वीकार कर लेती हैं।

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